बहुत पहले की बात है एक अमीर और शक्तिशाली राजा था. बहुत सारे राजवाडे और जमींदार उसके अधीन हुआ करते थे. ढेर सारे कर एवं राजस्व की वसूली से उसका खजाना भरा रहता था. इतनी खुशियों के वावजूद राजा हमेशा उदास और परेशान रहता था. सारे दरबारियों एवं मंत्रियों ने राजा की परेशानी की बजह जानने की बहुत कोशिश की लेकिन किसी को माजरा समझ में नहीं आया. एक दिन राजा अपने एक विद्वान् मंत्री के साथ भ्रमण कर रहा था तभी उसकी नजर फटेहाल कपडे पहने एक आदमी पर गयी. वह आदमी उस इलाके का सफाई वाला था और बड़ी मस्ती में गाते हुए सड़क पर झाडू लगा रहा था. राजा उसे देख कर रुक गया. उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने अपने मंत्री से पूछा कि मै इतना अमीर राजा होकर भी हमेशा दुखी रहता हूँ और यह फटेहाल आदमी इतना खुश कैसे हो सकता है. इसकी ख़ुशी का राज क्या है ?
मंत्री बोला : राजन इसकी ख़ुशी का राज यह है कि यह अभी क्लब 99 में शामिल नहीं हुआ है. जिस दिन यह क्लब 99 में शामिल हो गया इसकी साड़ी खुशियाँ उसी दिन ख़त्म हो जाएँगी. राजा को विश्वास नहीं हुआ. वह मंत्री से बोला कि मुझे यह समझाओ कि क्लब 99 क्या है और साथ ही यह आदेश दिया कि इस झाडू वाले को भी क्लब 99 में शामिल करो ताकि वह मंत्री के बात की सत्यता का भी पता लगा सके.
आधी रात को मंत्री राजा को साथ लेकर जमादार के झोपड़ी पर पहुंचा और उसके दरवाजे के आगे एक पोटली में सोने की 99 अशर्फियाँ रख कर चुपचाप वहां से वापस आ गया. मंत्री रास्ते में राजा से बोला कि राजन अब यह जमादार भी क्लब 99 में शामिल हो गया है. आज से इसकी सारी खुशियाँ और चैन ख़त्म और अब यह भी आपकी तरह दुखी और परेशान रहा करेगा.
सुबह जमादार ने जैसे अपना फाटक खोला उसे सामने एक पोटली दिखाई दी. पहले तो उसे लगा कि कोई आदमी अपनी पोटली भूल से यहीं छोड़ गया होगा और वह उसका इंतजार करने लगा. काफी देर तक जब उसे लेने कोई नहीं आया तो उत्सुकता वस उसने पोटली खोली. पोटली में सोने के सिक्के देख कर वह दंग रह गया. उसने चुपचाप पोटली उठाई और अन्दर जाकर अपनी पत्नी को सारा माज़रा बताया. दोनों ने किवाड़ बंद करके अशर्फियाँ गिननी शुरू कीं. पोटली में 99 अशर्फियाँ देखकर उसके आश्चर्य की सीमा न रही. उन्हें अशर्फियों की 99 की विशेष संख्या पर बड़ी हैरानी हुई. उन्होंने उन अशर्फियों को चुपचाप छुपा दिया और अपने काम में लग गए.
जमादार अब परेशान रहने लगा. उसे हमेशा चिंता लगी रहती थी कि कहीं उन अशर्फियों का असली मालिक आ न जाय और उसे छीन कर वापस ले जाय. या फिर कहीं चोर ही न उन्हें चुरा लें. खैर कुछ दिन शांति से गुजर गया तो उसके साँस में साँस आई. लेकिन अब वह अशर्फियों की 99 की संख्या से दुखी हो गया. उसने सोचा कि 99 अशर्फियों का क्या मतलब है, कम से कम सौ हों तब तो कोई बात हो. उसने एक और अशर्फी जोड़ने के चक्कर में रात दिन एक कर दिया. रात दिन के मेहनत से उसके पास 99 से 199 और फिर 299...999 आदि अशर्फियाँ आती गयीं लेकिन हर बार एक और अशर्फी के चक्कर में वह नए लक्ष्य बनाता गया. उसके चेहरे से अब वह पहले वाली ख़ुशी हमेशा के लिए गायब हो चुकी थी.
कुछ दिनों बाद मंत्री राजा को लेकर फिर उधर से गुजरा. राजा की नजर जमादार पर पड़ी तो वह हैरान रह गया. उसे ख़ुशी में गाते जमादार की जगह एक चिंतित, कमजोर और परेशान आदमी नजर आया. उसने मंत्री से इस बदलाव का कारण पूछा. मंत्री ने जबाब दिया, हुजुर यह क्लब 99 का कमाल है. जब तक इसके पास कुछ नहीं था और यह 99 के फेर में नहीं पड़ा था तब तक इसको कोई गम नहीं था, आज इसके पास ढेरों अशर्फियाँ हैं लेकिन कोई ख़ुशी नहीं.
राजा को अपनी उदासी का कारण भी अब समझ में आने लगा था.
विनोद कुमार श्रीवास्तव
12 April 2009
10 April 2009
लकडियाँ
स्कूल का बस्ता पीठ से उतार कर उसने अपने सीने से चिपकाया और लम्बे कदमो के साथ घर की ओर लपका . तेज़ गड़गडाहट के साथ बारिस के बूंदों की टिप टिप शुरू हो चुकी थी. जुलाई महीने का दूसरा सप्ताह था लेकिन बादल पिछले दो पखवाड़े से लुकाछिपी खेल रहे थे. मानसून की असली आहट अब सुनाई पड़ रही थी. पिछले कई दिनों से बादलों ने आसमान में घनी चादर तान रखी थी लेकिन बारिस नदारद थी. इस इलाके में मानसून बड़ी जालिम शक्ल दिखाती है. या तो इतना लम्बा सूखा पड़ता है कि धरती चटक जाय या इतनी ज्यादा बारिस होती है कि खेत के खेत बह जाय. आजकल स्कूल से निकलते वक्त वह अपनी नयी किताबों और कापियों को पोलिथीन में लपेट कर ही बस्ते में रखता था, क्या पता रास्ते में ही बारिस शुरू हो ले. इस साल भी शासन की ओर से उसको मुफ्त किताबें और कापियां स्कूल खुलते ही मिल गयी थी. उसके माँ बाप की हैसियत तो दो चार रूपये की फीस भरने की भी नहीं थी वे इतनी महँगी किताबें कहाँ खरीद पाते. उसका बीमार बाप कभी का स्कूल छुड़वा चुका होता लेकिन माँ के अड़ जाने के वजह से ही वह अभी तक पढ़ रहा था. कक्षा छः और सात दोनों ही में उसने सबसे ज्यादा नंबर पाए थे. हेड मास्टर साहेब ने बोला था कि अगर वह आठवीं में भी अव्वल रहा तो अगले चार सालों तक उसका फीस माफ़ रहेगा और हर महीने कुछ वजीफा भी मिलेगा. उसने ठान रखा था कि इस साल भी सबसे ज्यादा नंबर ला कर ही रहेगा. फिलहाल तो वह अपने किताबों की जागीर को सीने से चिपटाए घर की ओर भागा जा रहा था. पानी में लथपथ, घर पहुचते पहुचते वह बुरी तरह हांफ रहा था लेकिन उसके चेहरे पर एक संतोष का भाव था, अपने बस्ते को भीगने से जो बचा लिया था.
आज लगातार पाँचवे दिन भी वह स्कूल नहीं जा पाया. इतनी जबरदस्त बारिस उसने कभी नहीं देखी थी. इन पांच दिनों में पल भर के लिए भी बारिस रुकी नहीं थी. चारो ओर पानी ही पानी था. गाँव के कुओं का पानी ऊपर तक आ गया था. घर में आटा चावल तो था लेकिन उनको पकाने के लिए सूखी लकडियाँ कहाँ से आये? उसकी माँ के पाथे उपले सिल कर बिखर गए थे. दो चार टहनियां घर में पड़ी थी उन्ही पर केरोसिन उडेल उडेल कर किसी तरह दो तीन दिन रोटियां सिकी थीं. पिछले दो दिनों से उसका परिवार सत्तू खाकर पेट भर रहा था. वह तो किसी तरह सत्तू हलक से नीचे उतार ले रहा था लेकिन उसके सात साल और तीन साल के छोटे भाई बहनों से सत्तू नहीं खाया जा रहा था. भाई ने आज रो रो कर बुरा हाल कर लिया था जिसपर बापू ने उसकी पिटाई भी कर दी थी. माँ से देखा नहीं गया तो वह लाला के घर से थोडा बासी चावल मांग कर लायी थी. दोनों भाई बहन टूट पड़े थे उसपर . छोटी फिर भी भूखी रह गयी थी. आज रात के खाने का क्या होगा?
पिटने के बाद से ही भाई सत्तू देखकर रोया नहीं है लेकिन अब तो बापू से भी सत्तू नहीं खाया जा रहा है. बीमारी में खाना छूटना ठीक नहीं है. बहन भी सुस्त पड़ी सो रही है. दिया जलाने के लिए जरा सा तेल बचा है.
हे भगवान ! बहुत हो लिया, बंद करो ना बारिस अब !
सुनो ! छप्पर में से थोडा सरपत ( घास ) और एकाध बांस खीच लो. एक वक्त की रोटी सिक जायेगी, बारिस रुकने पर फिर छत ठीक कर लेंगे. अँधेरे कोने में से आती बापू की आवाज पर माँ चौंकी.
क्या कह रहे हो? हर जगह से पानी रिस रहा है. बांस भी गल कर नरम हुआ पड़ा है. एकाध बांस निकलते ही कहीं पूरा छप्पर नीचे ना आ पड़े. माँ बोली.
"देखो बहुत भूख लगी है. सत्तू देख कर अब उलटी आ रही है. कहीं से करो लकडी की व्यवस्था. कुछ नहीं होगा छप्पर को, निकाल लो उसमे से एक बांस".
चटाई पर लेटे लेटे उसने देखा कि माँ उठी और छप्पर के एक कोने से बांस खीचने का यत्न करने लगी है.
बिजली की कर्कश गड़गडाहट के साथ तेज़ चमक उठी . छणिक रौशनी में उसे फूस की छत में से आसमान के कई टुकडे झांकते हुए नजर आए. पिछली कई रातों से आसमान के इन टुकड़ों को देख देख कर उसे उनकी शक्लें याद हो चुकी हैं . आज उसे ए टुकड़े कुछ ज्यादा ही बड़े और भयानक दिखाई दे रहे हैं. 'अजीबो गरीब शक्लों वाले' आसमान के भयानक टुकड़े ! सारे के सारे उसे और उसके परिवार की ओर लपकते हुए ! उसे लगा कि सारा छप्पर गिरने वाला है. वह घबरा कर उठ बैठा .
माँ ! रुको ! मत निकालो उसे ! मै देता हूँ तुम्हे रोटी बनाने के लिए कुछ. वह अपने बस्ते तक गया और दो तीन किताबें निकाल कर माँ के हाथ में रख दिया. माँ इससे बड़ी अच्छी रोटिया सिकेंगी. लो जला लो इन्हें.
बापू , छोटा भाई और बहन, सब उठ कर बैठ गए. उन सब के आँखों में आसमान से भी ज्यादा चमक दिखाई दे रही थी.
विनोद कुमार श्रीवास्तव
आज लगातार पाँचवे दिन भी वह स्कूल नहीं जा पाया. इतनी जबरदस्त बारिस उसने कभी नहीं देखी थी. इन पांच दिनों में पल भर के लिए भी बारिस रुकी नहीं थी. चारो ओर पानी ही पानी था. गाँव के कुओं का पानी ऊपर तक आ गया था. घर में आटा चावल तो था लेकिन उनको पकाने के लिए सूखी लकडियाँ कहाँ से आये? उसकी माँ के पाथे उपले सिल कर बिखर गए थे. दो चार टहनियां घर में पड़ी थी उन्ही पर केरोसिन उडेल उडेल कर किसी तरह दो तीन दिन रोटियां सिकी थीं. पिछले दो दिनों से उसका परिवार सत्तू खाकर पेट भर रहा था. वह तो किसी तरह सत्तू हलक से नीचे उतार ले रहा था लेकिन उसके सात साल और तीन साल के छोटे भाई बहनों से सत्तू नहीं खाया जा रहा था. भाई ने आज रो रो कर बुरा हाल कर लिया था जिसपर बापू ने उसकी पिटाई भी कर दी थी. माँ से देखा नहीं गया तो वह लाला के घर से थोडा बासी चावल मांग कर लायी थी. दोनों भाई बहन टूट पड़े थे उसपर . छोटी फिर भी भूखी रह गयी थी. आज रात के खाने का क्या होगा?
पिटने के बाद से ही भाई सत्तू देखकर रोया नहीं है लेकिन अब तो बापू से भी सत्तू नहीं खाया जा रहा है. बीमारी में खाना छूटना ठीक नहीं है. बहन भी सुस्त पड़ी सो रही है. दिया जलाने के लिए जरा सा तेल बचा है.
हे भगवान ! बहुत हो लिया, बंद करो ना बारिस अब !
सुनो ! छप्पर में से थोडा सरपत ( घास ) और एकाध बांस खीच लो. एक वक्त की रोटी सिक जायेगी, बारिस रुकने पर फिर छत ठीक कर लेंगे. अँधेरे कोने में से आती बापू की आवाज पर माँ चौंकी.
क्या कह रहे हो? हर जगह से पानी रिस रहा है. बांस भी गल कर नरम हुआ पड़ा है. एकाध बांस निकलते ही कहीं पूरा छप्पर नीचे ना आ पड़े. माँ बोली.
"देखो बहुत भूख लगी है. सत्तू देख कर अब उलटी आ रही है. कहीं से करो लकडी की व्यवस्था. कुछ नहीं होगा छप्पर को, निकाल लो उसमे से एक बांस".
चटाई पर लेटे लेटे उसने देखा कि माँ उठी और छप्पर के एक कोने से बांस खीचने का यत्न करने लगी है.
बिजली की कर्कश गड़गडाहट के साथ तेज़ चमक उठी . छणिक रौशनी में उसे फूस की छत में से आसमान के कई टुकडे झांकते हुए नजर आए. पिछली कई रातों से आसमान के इन टुकड़ों को देख देख कर उसे उनकी शक्लें याद हो चुकी हैं . आज उसे ए टुकड़े कुछ ज्यादा ही बड़े और भयानक दिखाई दे रहे हैं. 'अजीबो गरीब शक्लों वाले' आसमान के भयानक टुकड़े ! सारे के सारे उसे और उसके परिवार की ओर लपकते हुए ! उसे लगा कि सारा छप्पर गिरने वाला है. वह घबरा कर उठ बैठा .
माँ ! रुको ! मत निकालो उसे ! मै देता हूँ तुम्हे रोटी बनाने के लिए कुछ. वह अपने बस्ते तक गया और दो तीन किताबें निकाल कर माँ के हाथ में रख दिया. माँ इससे बड़ी अच्छी रोटिया सिकेंगी. लो जला लो इन्हें.
बापू , छोटा भाई और बहन, सब उठ कर बैठ गए. उन सब के आँखों में आसमान से भी ज्यादा चमक दिखाई दे रही थी.
विनोद कुमार श्रीवास्तव
1 April 2009
इ आस्करवा का है ?
ए बाबू , इ आस्करवा का चीज है ?
आजकल बड़ा शोर मचा हुआ है कि आस्करवा मिल गया, आस्करवा मिल गया.
इ कहीं ''बिन लादेन'' तो नाही है जो अपनी पुलिस ने पकड़ ली. अइसे शोर हुआ था सन सत्तर में, जब डाकू गब्बर सिंह को ठाकुर ने पकडा था .
अरे नाही चाचा ! इ तो एक इनाम है जो अमेरिका वाले देत हैं अंग्रेजी फिलिम को. पहली बार अपने यहाँ के फिलिम को मिला है ना, इसीलिए इतना शोर है. "जय हो - जय हो" गाना है ना, उसी के वजह से मिला है . बड़ा धाँसू गाना है चाचा !
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला हो तलईया, जय हो - जय हो .
अरे बबुआ ! इ तू का गावत हो ? जय हो - जय हो के अलावा कुछ समझ में आ रहा है ?
अरे चाचा ! हमको भी पता नहीं कि ला ला ... ला ला का मतलब का है ? कौन गाना समझने की जरूरत है , अरे जब अमेरिका वाले बोल रहे हैं कि गाना बढ़िया है तो बढ़िया ही होगा. उनको अपनी लता मंगेशकर का गाना आज तक नहीं पसंद आया और इ वाला पसंद आ गया तो जरूर कोई बड़ी बात होगी इस गाने में . तुम ठहरे अनपढ़ आदमी इ सब गीत संगीत की बात नहीं समझोगे.
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला हो तलईया, जय हो - जय हो .
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला हो तलईया, जय हो - जय हो .
अरे हाँ चाचा ! फिलिम के कहानी भी बहुत धाँसू है . झोपड़ पट्टी के एक अनपढ़ लड़के को एमए - बीए पास से भी तेज़ दिखाया है इसमें. रातोरात करोड़पति बना दिया उसको. कुछ भी हो, इ अंग्रेजी फिलिम वालों का आइडिया जोरदार होत है. इसीलिए अंग्रेजी फिलिम किसी को समझ में आवे या ना आवे, यहाँ सब शो हॉउस फुल जात है .
अरे बचवा ! तबसे तूं अंग्रेजी फिलिम के बड़ाई किये जात हो, अपने यहाँ के फिलिम में कम आइडिया होत है ? इन को कोई इनाम काहें नाहीं मिलत है ? तनिक यहाँ के भी दो चार फिलिम के कहानी सुनो ना .
एक फिलिम में 'मिथुनवा' के दायें हाथ में पुलिस गोली मारत है और 'अमिता-बच्चन' जब उठा के उसको घर ले जात हैं तो उसके बाएं हाथ से गोली निकालत हैं. थोडी देर बाद उसके दायें हाथ में पट्टी दिखत है . एक फिलिम में जुड़वाँ भाई रहे, एक को मारो तो चोट दूसरे को लागत रहे . 'शारूख' के एक फिलिम में .......
अरे चाचा ! अब चुप हो जा. इन फिल्मन के भी खूब इनाम मिलत है अपने यहाँ ! 'फिलिम फेयरवा' के नाम नाहीं सुने हो का?
आजकल बड़ा शोर मचा हुआ है कि आस्करवा मिल गया, आस्करवा मिल गया.
इ कहीं ''बिन लादेन'' तो नाही है जो अपनी पुलिस ने पकड़ ली. अइसे शोर हुआ था सन सत्तर में, जब डाकू गब्बर सिंह को ठाकुर ने पकडा था .
अरे नाही चाचा ! इ तो एक इनाम है जो अमेरिका वाले देत हैं अंग्रेजी फिलिम को. पहली बार अपने यहाँ के फिलिम को मिला है ना, इसीलिए इतना शोर है. "जय हो - जय हो" गाना है ना, उसी के वजह से मिला है . बड़ा धाँसू गाना है चाचा !
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला हो तलईया, जय हो - जय हो .
अरे बबुआ ! इ तू का गावत हो ? जय हो - जय हो के अलावा कुछ समझ में आ रहा है ?
अरे चाचा ! हमको भी पता नहीं कि ला ला ... ला ला का मतलब का है ? कौन गाना समझने की जरूरत है , अरे जब अमेरिका वाले बोल रहे हैं कि गाना बढ़िया है तो बढ़िया ही होगा. उनको अपनी लता मंगेशकर का गाना आज तक नहीं पसंद आया और इ वाला पसंद आ गया तो जरूर कोई बड़ी बात होगी इस गाने में . तुम ठहरे अनपढ़ आदमी इ सब गीत संगीत की बात नहीं समझोगे.
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला हो तलईया, जय हो - जय हो .
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला हो तलईया, जय हो - जय हो .
अरे हाँ चाचा ! फिलिम के कहानी भी बहुत धाँसू है . झोपड़ पट्टी के एक अनपढ़ लड़के को एमए - बीए पास से भी तेज़ दिखाया है इसमें. रातोरात करोड़पति बना दिया उसको. कुछ भी हो, इ अंग्रेजी फिलिम वालों का आइडिया जोरदार होत है. इसीलिए अंग्रेजी फिलिम किसी को समझ में आवे या ना आवे, यहाँ सब शो हॉउस फुल जात है .
अरे बचवा ! तबसे तूं अंग्रेजी फिलिम के बड़ाई किये जात हो, अपने यहाँ के फिलिम में कम आइडिया होत है ? इन को कोई इनाम काहें नाहीं मिलत है ? तनिक यहाँ के भी दो चार फिलिम के कहानी सुनो ना .
एक फिलिम में 'मिथुनवा' के दायें हाथ में पुलिस गोली मारत है और 'अमिता-बच्चन' जब उठा के उसको घर ले जात हैं तो उसके बाएं हाथ से गोली निकालत हैं. थोडी देर बाद उसके दायें हाथ में पट्टी दिखत है . एक फिलिम में जुड़वाँ भाई रहे, एक को मारो तो चोट दूसरे को लागत रहे . 'शारूख' के एक फिलिम में .......
अरे चाचा ! अब चुप हो जा. इन फिल्मन के भी खूब इनाम मिलत है अपने यहाँ ! 'फिलिम फेयरवा' के नाम नाहीं सुने हो का?
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