4 January 2009
कहीं वह मृत्यु तो नही?
क्या हम सब किसी (कल्पित) चरम दिन की प्रतीक्षा नही कर रहे हैं ? बचपन में बड़े होने की, बड़े होने पर और बड़ेहोने की , अच्छे कैरियर में स्थापित होने की , फिर जीवन साथी मिलने की, कभी सुंदर घर बन जाने की, आदि आदि ...प्रतीक्षा। और पुनः यही सब अपने बच्चों के लिए। व्यक्ति के पुरुषार्थ, क्षमता, अवसर और परिस्थिति के अनुसारउन्हें ए मिलती भी जाती हैं। लेकिन हर इच्छा की प्राप्ति पर पुनः अतृप्ति ? फिर कुछ खालीपन, फिर किसी अन्य सुखकी प्रतीक्षा ! वह कौन सी कमी है जो जीवन पर्यंत पूरी नही हो पाती। हम किस चरम आनंद की प्रतीक्षा कर रहे हैं? कहीं वह ईश्वर से साक्षात्कार तो नही ? कहीं वह मृत्यु ही तो नही?
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1 comment:
विनोद जी,
मैं भी आपकी तरह ही विचर रखता हूँ और यह मानता हूँ कि जीवन मृत्यु की प्रतिक्षा मात्र नह है. मैने अपने इस विचार को अपने ब्लॉग : http://mukeshtiwari.mywebdunia.com पर मेरे विचार खंड में लिखी हैं.
आपके विचार चाहूँगा.
मुकेश कुमार तिवारी
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