गिद्धों की अखिल भारतीय वार्षिक सम्मलेन में एक बार फिर सर्व सम्मत से निर्णय लिया गया : इस वर्ष भी नेताओं की लाशों को कोई गिद्ध चोंच नही लगायेगा।
कहीं से कोई विरोध नहीं, लगभग पूरी एकता, और प्रस्ताव पारित ! भूखों मर जायेंगे, हलवा-पूरी खा के जिन्दा रह लेंगे लेकिन नेता भक्षण नही करेंगे । जिन्दा मानुष नोच कर खाने वाले तो अपनी बिरादरी के ही हैं, बल्कि हमसे भी नीच जाति के हैं, भला उन्हें हम कैसे खा सकते हैं।
एक गिद्ध खड़ा हो कर बोला, नेता खाने को तो वैसे भी नही मिलता, कमबख्त टाइट सिक्यूरिटी में रहते हैं, मरते भी कम हैं । बुजुर्गों ने उसे घूर कर डपटा, ऐसे कहीं बोलते हैं नेताओं के बारे में? बेटा ! नेता हैं इस देश में तो खाने को भी मिल रहा है, नही तो अब तक फल-फूल, दाल, रोटी, सब्जी या मेवा- मिठाई खा के जिन्दा रहना पड़ता । नौजवान को अपनी गलती का जैसे बोध हुआ और अपने इलाके के नेताजी का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करते हुए बैठ लिया।
एक खोजी गिद्ध पीछे से बोल उठा, ऐसे तो हम पुलिस भी नही खा सकते । वे नेताओं से कम नोच रहे हैं क्या ? अभी हाल ही में एक नेता ने पुलिस के साथ मिल कर एक इंजिनियर का शिकार किया है. सबकी चोंचें उसकी ओर आश्चर्य से मुडी। एक पदाधिकारी बोला : भला ए तुमने कौन सी नई रिपोर्टिंग की है ? ऐसे शिकार तो हमेशा से वे करते आ रहे हैं। और पुलिस खाना तो हमने अंग्रेजो के टाइम से ही बंद कर रखा है। हाँ ! लेकिन आपलोग नेता और पुलिस को ग़लत निगाह से न देखें । वे है अपनी ही समाज से, फर्क शिर्फ़ यह है कि वे जिन्दा और मालदार शिकार खोजते हैं और हम मरे जानवरों को साफ करते हैं। खोजी गिद्ध ने खिसिया कर चोंच घुमा ली ।
सभा के समाप्त होते होते यह निर्णय हुआ कि गिद्ध समाज के अगले सम्मलेन में नेताओं और पुलिस को भी आमंत्रित किया जाएगा।
सुनते हैं कि नेताओं और पुलिस में खुशी कि लहर है कि आखिरकार गिद्धों ने उन्हें अपने समाज में जगह दे ही दी ।
(वीभत्स ब्लॉग के लिए छमा ! क्या करें, नेता और पुलिस के बारे में लिखने पर वीभत्स रस अपने आप टपक लेताहै । )
विनोद श्रीवास्तव
1 comment:
नहीं, बिल्कुल वीभत्सता नहीं लगी।
आपने जो भी लिखा, एकदम कड़वा सच लिखा। पर अंत जमा नहीं, नरभक्षी गिद्धों को असली गिद्धों ने कैसे अपने समाज में शामिल कर लिया।
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