झिलमिल सितारों से भरी,
आकाशगंगा की परी,
लहरा के आँचल चल पड़ी,
नाज़ुक, लचकती बल्लरी,
मखमल सी कोमल चाँदनी,
कलकल, नदी की रागिनी,
बंसी की मादक तान,
जैसे भैरवी, शिवरंजिनी,
पायल में छमछम सी खनक,
आंखों में जुगनू की चमक,
शीतल पवन यूँ मंद-मंद,
सासों में फूलों की महक,
'प्रियतम' बड़ा बेकल अधीर,
उस छोर झांके नभ को चीर,
सदियों से लम्बी हर घड़ी,
'क्यूँ चल रही धीरे, अरी'?
बेला मिलन की आसपास,
चहु ओर लाली की उजास,
आलिंगनबद्ध 'निशा-भोर'
धरती को नवजीवन की आस।
10 comments:
शब्द और भाव सौन्दर्य से भरी एक सुंदर कविता के लिए साधुवाद.
ati sundar
bahut sundar.....
अतिसुन्दर ! समझ नहीं आरहा ,तारीफ करूँ या कमर खुजाऊँ :)
priy vinod jee /aapkee kavita kaa sheershak to padhne me aaraha hai kintu kavita padne me nahi aarahee hai shayad fond gadvad hai जब मैंने पढने की कोशिश की तो वहां गोल गोल बिंदियाँ बनी हुई है
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
कल मुझसे क्या गलती हो रही थी समझ में ही नहीं आया / अति सुंदर शब्दों का चयन /सुंदर भावाभिव्यक्ति /प्रकृति की सुन्दरता का चित्रण ,एक कल्पना (नाम नही बल्कि एक तसब्बुर )
बहुत ख़ूब
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आप भारत का गौरव तिरंगा गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने ब्लॉग पर लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
प्रिय विनोद जी /हाइकू की टिप्पणी हाइकू में और वह भी ऐसी कि रचना से ज़्यादा टिप्पणी सशक्त लगी /धन्यबाद
bahut badiya..........
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