1.
मज़हब लाता है करीब,
इंसान को,
ईश्वर, अल्ला और ईशा के.
हजारों क़त्ल होके,
हो गए करीब,
ईश्वर, अल्ला और ईशा के.
2.
मज़हब तोड़ता है दीवार,
दिलों के बीच की,
राम, रहीम और पीटर के.
खंज़र उतरा था, ठीक
दिल की दीवारों में
राम, रहीम और पीटर के.
3.
मज़हब सिखा देता है हमें
जीने का ढंग,
हिन्दू सा, मुस्लिम सा, ईसाई सा.
क़त्ल कर लेते हैं हम
तभी तो,
हिन्दू सा, मुस्लिम सा, ईसाई सा.
5 comments:
बहुत ख़ूब !
इन बकरों की समस्या, इनकी सांस्कृतिक परिवेश जान पड़ती है. जिन्हें, घास चरना और सींग से लड़ाई करना ही जीवन का एक मात्र उद्देश्य सिखाया गया है. अगर इन असभ्य बकरों को सींग के अन्य उपयोग की सोच भी होती तो शायद कसाई के हाथों कटते नहीं बल्कि अन्य जानवरों की तरह जीवन का सदुपयोग कर पाते.
प्रिय विनोद , कितनी बार आपके ब्लॉग पर आया लेकिन कोई नया लेख न देख कर दुखित हुआ | कहीं मैंने आपको इस वाबत लिखा भी था आपका पता होता तो कारण पूछता ||आज की पोस्ट अच्छी लगी वैसे तो यह कहा गया है मंदिर मस्जिद बैर कराते मेल कराती मधुशाला और किसी ने यह भी कहा की साथ साथ चलते हैं पर मिल नहीं सकते ,मजहब ने हमें रेल की पटरी बना दिया ,इनके विपरीत आपका लेख और रचना ने भाई चारे की भावना जगाई है | धन्यबाद
सच ही है, बकरे की माँ और मज़हब के अंधे कब तक खैर मनाएंगे. सुन्दर रचनाएँ!
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
प्रभावशाली रचना .....
शुभकामनायें !
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