प्रयास " जाने क्या " ढूढने का, " न जाने क्या " पाने का !
19 December 2011
सुबह से राह दिखाते, अकेला छोड़ देता है जब सूरज, काली घनी रातों के दर पे, तभी, थाम लेता है आकर, किसी कोने से अधकटा चाँद, तो कभी स्याह अस्मां से बिखरे मोती. कभी चमकती है शमशीर, बादलों में, चीरती अँधेरे को, राह दिखाती मजिल की.
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