कुकडू..उू...उू...उू...उू..कू ..उू...उू.
किसी अनजान आशंका वश सारी मुर्गियों की नज़रें इस आवाज की तरफ उठ गयी. आज पीली कलगी वाले ने उसे चुनौती देने का दुस्साहस किया था. दड़बे मे घमासान होने का फिर माहौल बन रहा था.
बड़ी सी लाल कलगी लहराते हुये अपनी छाती फुला कर उसने भी तेज बांग लगायी. देखते ही देखते दड़बे मे शोरगुल और अफरा तफरी मच गयी. दोनों मुर्गों ने पंख फडफडा कर एक दूसरे को चोंच मारना शुरू किया. लेकिन लाल कलगी वाले के सामने कोई मुर्गा भला कितनी देर टिकता. उसने पीली कलगी वाले को अपनी चोंच मे जकड कर दड़बे के छोर तक धकेल डाला. लहूलुहान पीली कलगी वाला किसी तरह उसकी चोंच से छूट कर अपनी जान बचा कर भागा.
लाल कलगी वाला मुर्गा उस दड़बे का सबसे तगड़ा मुर्गा था. उसे चुनौती देने का साहस किसी मुर्गे मे नहीं था. अगर किसी ने उसके सामने आने की कोशिश की भी थी तो उसने अपनी खाल ही नुचवायी थी.
नुकीले पंजों से दड़बे की सतह को खरोंचते हुए उसने चारो ओर विजयी नज़र दौडाई. दड़बे के सारे मुर्गे सहम कर एक कोने में दुबक लिए. मुर्गियों ने भी दानें चुगना छोड़ कर सहमी नजरों से उसे घूरना शुरू कर दिया. पीली कलगी वाले ने मुर्गियों के पीछे पनाह ली. थोड़ी देर की उथल पथल के बाद दड़बे में फिर से शांति हो गयी. दड़बे में रोज एकाध बार इसी तरह प्रभुता और सामर्थ्य का प्रदर्शन चलता रहता था. लेकिन लाल कलगी वाला ही वहाँ का बादशाह था.
आज
काफी उथल पुथल मची हुई थी. चुन चुन कर हट्टे-कट्ठे मुर्गे - मुर्गियों को अलग किया जा रहा था. थोड़ी देर बाद चुने हुए बीस पचीस मुर्गे मुर्गियों के झुंड के साथ उसे भी शहर रवाना कर दिया गया. बांस के टोकरे में हिलने डुलने तक की गुंजाईस नहीं थी. छोटी सी तंग जगह में ठुसे जाने के कारण अपने अधीन 'प्रजा' के बीच आज वह हतप्रभ और अपमानित नज़र आ रहा था. उसने अपने पास ठुसे पीली कलगी वाले को घृणा से देखते हुए तेज़ चोंच मारी. छटपटा कर वह पीछे की ओर दुबका तो दूसरा अनजाने में उसके पास आ गया. शहर तक दो घंटे की यात्रा में टोकरी के लगभग सारे मुर्गे उसकी 'चोंच' खा चुके थे.
शहर का यह इलाका बहुत शोरगुल वाला था. चारो ओर अनगिनत टोकरियों मे हजारों मुर्गे भरे पड़े थे. उसने अपनी चोंच उठा कर नयी जगह का निरीक्षण किया. यहाँ भी उसे किसी मुर्गे की कलगी और छाती अपने से बड़ी नज़र नहीं आई. नये इलाके मे अपनी श्रेष्ठता का आभास होते ही उसने छाती फुला कर फिर से तेज बांग लगायी.
कुकडू..उू...उू...उू...उू..कू ..उू...उू.
तेज बांग की आवाज से आकर्षित एक साथ कई नज़रें उसके टोकरे की तरफ उठ गयी. एक अमीर से आदमी ने उसके मालिक को इशारा किया. अगले ही पल उसे टोकरे मे से खींच कर पिछवाडे की तरफ भेज दिया गया. थोडी देर की छटपटाहट के बाद टोकरे मे शान्ति छा गयी.
पीली कलगी वाले ने इधर उधर नज़र फेरी. लाल कलगी वाला कहीं नज़र नहीं आया. थोडा आश्वश्त होने के बाद उसने अपने पंख फडफडाये और आसपास के मुर्गों पर चोंच मारते हुये टोकरे मे अपने लिये और जगह बनायी. फिर छाती फुला कर उसने बांग लगायी.
कुकडू..उू...उू...उू..कू..उू...उू.
कोई उसके सामने नहीं आया. आज उसका कोई प्रतिद्वंदी नहीं था. किसी मुर्गे मे उससे टकराने का साहस नहीं था.
वहां का बादशाह अब पीली कलगी वाला था.
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