ऑरगन और वोइलिन के मधुर ओर्केस्ट्रा की चिर परिचित धुन उसके कानों में अचानक गूँज उठी. अपने ऊपर बिखरे ट्यूलिप और गुलाब की हजारों पंखुडियों को परे हटा कर जैसे - तैसे उन्ही पंखुडियों के दलदल में धंसते हुए वह उस धुन के स्रोत की ओर लपकी. पैरों के नीचे फूलों के दलदल और ऊपर लिपटे रेशमी लिबाश ने उसको जैसे जकड़ लिया था. अपने आप को बेवश पाकर उसने ध्वनि को पकड़ने की चेष्टा में अपना हाथ बढ़ाया. उसके हाथ का जैसे स्पर्श पाकर ध्वनि शांत हो गयी. वह घबरा कर उठ बैठी. आज फिर उसने कुछ कुछ रोज जैसा ही सपना देखा था. वही फूलों से लदी मखमली घाटी, चारो ओर फैली सुनहली चांदनी, हवा में मिश्रित आदिम देह की मादक खुशबू, दूर से आमंत्रित करती मानव आकृतियाँ और आज ए मधुर संगीत की स्वरलहरी. हर बार वह अपने आप को उन्ही फूलों के दलदल और रेशम की उलझी हुई लिबास में जकड़ी हुई पाती जिसमे से निकल पाने में वह अभी तक सफल नहीं हो पायी थी.
कुछ पल के सन्नाटे के बाद फिर वही धुन गूँज उठी. इस बार यह साइड टेबल पर रखे कीमती मोबाइल से आ रही थी. बिना स्क्रीन देखे वह समझ गयी कि यह आनंद का फ़ोन है. इतनी रात को और कौन फोन करेगा. जरूर उसका कोटेशन एक्सेप्ट हो गया होगा और इसी ख़ुशी को बांटने के लिए उसने फोन किया होगा.
इस आर्डर को पाने के लिए तीन महीनो में वह USA का पांच चक्कर लगा चुका था. कंपनी का प्रोफाइल और प्रेजेंटेशन तैयार करने के लिए उसने रात दिन एक कर दिया था. पिछले दस दिनों से तो अपनी सेक्रेटरी और मैनेजर के साथ वॉशिंगटन में ही जमा था. इस साल का यह चौथा सप्लाई आर्डर होगा लेकिन इसकी बात ही कुछ और थी. माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी से इतना बड़ा आर्डर मिलना आसान नहीं था. उसकी अपनी कंपनी है भी कितनी पुरानी, अभी आठ साल भी नहीं हुए उसको अपना काम शुरू किये हुए. देखते देखते उसका टर्न ओवर पिछले साल 100 करोड़ पार कर गया. कालेज के दिनों से ही उसमे कुछ बड़ा करने की अदम्य इच्छाशक्ति थी. उसकी सोच और साहस देख कर ही वह उसके करीब आई थी. खुद उसके अंदर भी तो दुनिया की सारी खुशियाँ भोग लेने की चाह कूट कूट कर भरी हुई थी. आज आनंद की बदौलत दुनिया के सारे भौतिक सुख गाड़ी, बंगला, नौकर-चाकर, महगे जेवर गहने, पैसे और पता नहीं क्या क्या उसके क़दमों में बिखरे पड़े थे.
मोबाइल की रिंग टोन तब तक शांत हो चुकी थी. उसने समय देखा तो रात के तीन बजने को थे. वह सुबह भी तो फोन कर के बता सकता था, आधी रात को जगाना जरूरी था क्या? कुछ तो बेवक्त नींद टूटने की झुझलाहट और कुछ रोज की तरह आज भी सपने में खुद की बेवशी ने उसका मन खिन्न कर दिया था. उसने मोबाइल स्विच ऑफ किया और इम्पोर्टेड रेशमी लिहाफ में खुद को समेट लिया.
दरवाजे पर ठकठक की आवाज ने एक बार फिर उसे नीद से झकझोरा. उठ कर दरवाजा खोला तो उसकी कामवाली नीरू चाय की केतली लिए खड़ी थी. नीरू को चाय बनाने को बोल कर आँख मलते वह बाथरूम में घुस गयी. लौटी तो झुक कर चाय बना रहे नीरू के कुरते पर उसकी नजर पड़ी. अरे! तुमने आज फिर कुरता उलटा पहन रखा है ?
सॉरी मेम साब ! गलती से उलटा पहन लिया. अभी ठीक करके आती हूँ.
फिर "मेम साब" बोली ? कितनी बार कहा है कि गवांरों वाली भाषा मेरे घर नहीं चलेगी.
सॉरी "मैडम" ! 'घबराहट में मेम साब बोल दिया'. और तेजी से वह कमरे से बाहर निकल गयी.
कितनी गवांर औरत है, कपड़े तक पहनने का शऊर नहीं है. आज दूसरी बार देखा है इसको उलटे कपड़े में. जबसे इसका आदमी कमाने के लिए कहीं बाहर गया है जाने कहाँ खोयी रहती है, कोई काम ठीक से नहीं करती. इन गरीबों की किश्मत इसी लिए ख़राब रहती है.
अचानक उसका ध्यान आनंद के रात वाले फोन की ओर गया. उसने कॉल बैक करने के लिए जैसे अपना मोबाइल स्विच ऑन किया बीप बीप के साथ एक SMS स्क्रीन पर प्रकट हुआ. यह आनंद का SMS था जो शायद उसने रात में ही किया होगा. उसने झट से SMS पढना शुरू किया. एक लाइन का SMS पढ़ते ही उसका दिल धक् से बैठ सा गया. उसे माइक्रोसॉफ्ट से आर्डर नहीं मिल पाया था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह आनंद से क्या बात करे. कितना मेहनत किया था उसने इसके लिए. पिछले कई महीनों से वह खाना पीना और यहाँ तक कि उसे भी भूल चुका था. उसने सोचा कि अगर यह आर्डर मिल जाता तो आनंद की व्यस्तता और बढ़ जाती.पिछले कई महीनो से उसके साथ अन्तरंग क्षणों की बात तो दूर उसके शरीर का स्पर्श पाने को वह तरस गयी थी. रोज रात बिस्तर पर पसरे उसके निढाल शरीर को देखकर उसे अपने ऊपर कहीं ज्यादा दया आती थी. उसने सोचा कि चलो अच्छा हुआ चैन से साथ कुछ दिन साथ तो बिताने को मिलेगा. उसने कपबोर्ड से जोगिंग ड्रेस निकाली और ग्राउंड फ्लोर पर बने जिम की ओर चल पड़ी.
आनंद को USA से आये एक महीने से ऊपर हो चला है. अब वह पहले से भी अधिक व्यस्त हो गया है. उसकी कम्पनी का टर्न ओवर थोड़ा सा कम होने के वजह से सप्लाई ऑर्डर नहीं मिल पाया था. उसने अब रात दिन एक करके ताइवान वाले प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया है. इस साल अपना टर्न ओवर डेढ़ गुना तक बढ़ाने का उसने मुश्किल लक्ष्य बना लिया है. महीने के अधिकतर दिन वह टूर पर ही रहता है. उसके पास अपना समय काटने का कोई विकल्प नहीं है. कई बार उसने उसे समझाने की कोशिश किया कि क्या जरूरत है हमें इतने बड़े लक्ष्य की . कुछ समय हमें खुद के लिए नहीं चाहिए क्या? हम अपनी खुशियों के लिए कब जियेंगे? आखिर कौन भोगेगा इतना सारा वैभव ? लेकिन हर बार उसके तर्क बेकार जाते, आनंद के लिए जीवन की खुशियों का मतलब सिर्फ नए लक्ष्य बनाना और उसे पाना रह गया था.
आज फिर उसने अपने आप को नरम पंखुडियों के दलदल में धंसा पाया. मद्धिम चांदनी रात में चारो ओर मडरातीं वही मानव आकृतियाँ, उसे अपनी ओर आमंत्रित करते हुए, लेकिन पैरों के नीचे दलदल की वजह से उसकी पहुँच से दूर . उनके मांसल शरीर से आती आदिम गंध उसे मदहोश किये जा रही हैं. उसने ठान लिया है कि आज उनमे से किसी एक का हाथ पकड़ कर दलदल से ऊपर आकर रहेगी. उसने हाथ बढा कर एक आकृति को पकड़ा और अपने सीने की ओर कस कर खींच लिया.
क्या कर रही हो ? आनंद की तेज आवाज से चौंक कर वह सहसा जग गयी. उसने आनंद को अपने बाजुओं में जकडा हुआ पाया जो उससे आजाद होने की भरसक कोशिश कर रहा था. उसकी गर्म साँसें आनंद के चेहरे को झुलसा रही थीं. उसने अपनी जकड़ ढीली करते हुए आनंद की आँखों में अपनी आँखें गहरे तक उतार दीं. नाईट लैंप की धीमी रौशनी में भी आनंद को उसके आँखों की भाषा पढने में कठिनाई नहीं हुई.
उसे परे धकेलते हुए वह झल्ला कर बोला, सोने दो मुझे, कल सुबह की फ्लाईट पकडनी है, क्लाइंट के साथ बहुत जरूरी मीटिंग है मेरी.
कांपती सी आवाज में उसने पूछा, क्या इन मीटिंगों और फ्लाइटों के बीच में मेरे लिए तुम्हारी कुछ जिम्मेदारी नहीं है. क्या शरीर को सिर्फ इन मीटिंगों, फ्लाइटों और टर्न ओवरों की जरूरत है?
देखो बहस मत करो, मै ए सब कुछ तुम्हारे लिए ही तो कर रहा हूँ. एक बार ठीक से बिजिनेस सेटल हो जाने दो. सारी जिंदगी पड़ी है बाकी सब के लिए. सोने दो अब मुझे . ओके ! गुड नाईट .
उसने आज अपने आपको नरम गद्दे के दलदल में धंसा पाया. एसी की ठंडी हवा में भी पसीने से लथपथ. अपने आप को इस घुटन से आजाद करके वह कमरे से बाहर निकल आई. अनायास उसके कदम ऊपर जाती सीढ़ियों की तरफ बढ़ चले. शायद ताजी हवा की चाह में शरीर की नैशर्गिक प्रतिक्रिया वश .
उसे टेरेस पर गए वर्षों हो गए थे बल्कि उसे कभी ऊपर जाने की जरूरत ही नहीं महसूस हुई. टेरेस पर ड्राइवर और माली के लिए एक कमरा था. नीरू किचेन या स्टोर में ही सोती थी.
उसने अपरिचित से छत की गर्म, ठोस सतह पर कदम रखा. उसे दूर कोने में कुछ साए आपस में लिपटे नजर आये. उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ. वह धीमे धीमे उन सायों की तरफ बढ़ी. पास जाकर देखा तो साए कही गायब हो चुके थे. वह सीढियों की तरफ वापस लौट आई. अचानक उसे दरवाजे पर नीरू दिखाई पड़ी.उसने उसके घबराए चेहरे और पसीने में लथपथ शरीर पर नजर डाली . सीढियों से आती झीनी रौशनी में उसने देखा कि नीरू ने आज फिर अपना कुरता उलटा पहना हुआ था.
कांपती आवाज में वह फुसफुसाई : मेम साब! गलती से आज फिर कुरता उलटा पहन लिया और तेज कदमो से वह सीढियों से नीचे उतर गयी.
रेलिंग के पास खड़े होकर उसने चारो ओर नजर दौडाई. छत पर मद्धिम चांदनी फैली हुई थी कुछ कुछ उसके सपनों जैसी. उसे हवा में मिश्रित आदिम देह की मादक खुशबू और अपने इर्दगिर्द हजारों मानव आकृतियाँ महसूस होने लगी. उसने उन सायों को छूने के लिए हाथ बढाया. आज उसके पैरों के नीचे दलदल नहीं बल्कि ठोस सतह थी. आज सारे साए उसकी पहुँच में थे.
वह बुदबुदाई ! नीरू , तुमने उलटा कुरता पहन कर कोई गलती नहीं की.
2 comments:
अज्ञानी को ज्ञान प्राप्त हो गया , इसी लिए तो वह बुदबुदाई .................
"नीरू , तुमने उलटा कुरता पहन कर कोई गलती नहीं की."
और यही कारण था कि आज उसके पैरों के नीचे दलदल नहीं बल्कि ठोस सतह थी.
आज सारे साए उसकी पहुँच में थे.
सुन्दर प्रस्तुति.
आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
मानव प्रकृति या प्रब्रती का अच्छा चित्रण /बहुत गहन चिंतन के बाद ही लिखा जा सकता है कभीमेम साहब कहने पर आपत्ति ,कभी नहीं /कभी उल्टे कपडे पहनने पर आपत्ति कभी नहीं /ऐसा क्यों होता है ? व्यक्ति जिस परिवेश में जीता है या जीना पड़ता है उन्ही के अनुसार मानसिक परिवर्तन होने लगता हैहम कभी ऑफिस से परेशान आयें तो लाख कोशिश करने पर भी प्रसन्न नहीं रह पाते कभी कभी तो हर चीज़ बुरी लगती है -हम चुपचाप थोड़ी देर बैठे रहना चाहते है मगर " क्यों क्या बात हो गई ?" ऐसे उदास क्यों बैठे हो ?"" हम से कोई गलती हो गई क्या ? "सर में दर्द हो रहा है क्या ? "" एक शेर है "" आदमी संजीदा हो जाता है वैसे भी कभी , तुम उलझ जाते हो आखिर बात तो समझा करो ""
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