कृष्ण ! तुम कहाँ हो !
सत्य है पराजित,
बेवस, हे केशव !
आज फिर 'द्रोपदी' को
नोच रहे 'कौरव'.
अधम, नीच, पापी
कर रहे शासन,
साधु जन शोषित,
पीड़ित हैं सुजन.
व्याप्त है सर्वत्र
अधर्म ही अधर्म,
कामना में ‘फल’ की
हो रहा कुकर्म
स्तब्ध है ‘पार्थ’
सशंकित हर मन
दिये कुरुक्षेत्र में,
परित्राणाय साधुनाम,
विनाशाय च दुष्कृताम,
धर्म संसथाप्नार्थाय,
फिर से अवतार लो
कृष्ण ! तुम जहाँ हो !
कृष्ण ! तुम जहाँ हो !
No comments:
Post a Comment