एक नज़्म
मेरी दुआ में वैसे तो कोई कमी न थी,
शायद ख़ुदा को फ़िक्र ही तेरी रज़ा की थी,
जाने ख़ुदा
से तुमने इबादत में
क्या कहा,
सारी दुआ
रकीबों की कबूल हो गयी .
लेकर मशाल
- ए - आशिकी मै साथ चला था,
परवाह
आँधियों का मेरे दिल में कहाँ था,
रस्ते न
जाने तुमने ही क्यूँ कर बदल लिए,
और मेरे
दिल की रोशनी फ़िज़ूल हो गयी .
तुम पर
किसी भी बात का
इलज़ाम नहीं है,
तुमने तो
निभाया है दस्तूर
- ए - ज़माना,
दस्तूर -
ए - मोहब्बत की मुझसे भूल हो गयी .
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