3 May 2013






वहां सामने जो धुंआ दिख रहा है,
मुझे आदमी का निशां दिख रहा है.

     बस्ती जली है या चूल्हा जला है,
   किसी और को ये कहाँ दिख रहा है.


यहीं चीख सी इक सुनाई पड़ी थी,
 मगर ये शहर, बेजुबां दिख रहा है.


    लगी आग खुद, या लगायी गयी है,
    यहाँ हर दिया, राजदां दिख रहा है.


क्या आदमी की नयी नस्ल है ये,
लहू में सना, हर जवां दिख रहा है.

    दुआ में अभी हाथ कैसे उठायें,
    परेशान सा, आसमां दिख रहा है.

             (v.k.srivastava)