9 October 2009

दिल के अरमां कागजों पे कह गए

बीबी मायके में और शाम की दस्तक. रात के 'खाने' की चिंता. दिल में तरह तरह के ख्याल आने का वक्त. चलिए आप से बाँट लें. शायद आप का भी यही दर्द हो.

वो जब याद आये, बहुत याद आये.
कई दिन से घर का, न भोजन मिला है,
भला कोई कब तक, बटर-ब्रेड खाए,
वो जब याद आये, बहुत याद आये.

मेरी तमन्नाओं की तक़दीर तुम सवांर दो,
हलवा-पूरी-सब्जी और साथ में अचार दो,
साथ में अचार दो.

दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा,
हो गया गरीब अब, मै 'मालदार' ना रहा
'मालदार' ना रहा

जिंदगी प्यार की, दो चार घड़ी होती है,
हर घड़ी पास में बीबी जो खड़ी होती है,
जिंदगी प्यार की, दो चार घड़ी होती है.

रस्मे-उल्फत को निभाएं तो निभाएं कैसे,
हर तरफ हुस्न है, नज़रों को झुकाएं कैसे,
रस्मे-उल्फत को निभाएं तो निभाएं कैसे.

और आखिर में

हुई शाम उनका ख्याल आ गया,
वही 'रोटियों' का सवाल आ गया,
हुई शाम उनका ख्यायायाल आ गया.

2 comments:

Vijay Kumar said...

mere 'dushman' tu meri dosti ko tarse. ke 'halva' kya tu 'basi khichadi' ko tarse.

BrijmohanShrivastava said...

ब्लोग बना कर उस पर सक्रिय न रहो तो लोग भूलने लगते है