24 April 2013


एक नज़्म

मेरी दुआ में वैसे तो कोई कमी न थी
शायद ख़ुदा  को फ़िक्र ही तेरी रज़ा की थी,
जाने ख़ुदा से तुमने इबादत में क्या कहा,
सारी दुआ रकीबों की कबूल हो गयी .

लेकर मशाल - ए - आशिकी मै साथ चला था,
परवाह आँधियों का मेरे दिल में कहाँ था,
रस्ते न जाने तुमने ही क्यूँ कर बदल लिए,
और मेरे दिल की रोशनी फ़िज़ूल हो गयी .

तुम पर किसी भी बात का इलज़ाम नहीं है,
शायद वफ़ा निभाना ही आसान नहीं है,
तुमने तो निभाया है दस्तूर - ए - ज़माना,
दस्तूर - ए - मोहब्बत की मुझसे भूल हो गयी .

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